वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

प꣡व꣢स्व सोम द्यु꣣म्नी꣡ सु꣢धा꣣रो꣢ म꣣हा꣡ꣳ अवी꣢꣯ना꣣म꣡नु꣢पू꣣र्व्यः꣢ ॥४३६॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

पवस्व सोम द्युम्नी सुधारो महाꣳ अवीनामनुपूर्व्यः ॥४३६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । द्युम्नी꣢ । सु꣣धारः꣢ । सु꣣ । धारः꣢ । म꣣हा꣢न् । अ꣡वी꣢꣯नाम् । अ꣡नु꣢꣯ । पू꣣र्व्यः꣢ ॥४३६॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 436 | (कौथोम) 5 » 1 » 5 » 10 | (रानायाणीय) 4 » 9 » 10


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र का पवमान सोम देवता है। सोम परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) आनन्दरसागार परमात्मन् ! (द्युम्नी) यशस्वी, (अवीनां महान्) बहुत-सी भूमियों से भी अधिक महान्, (पूर्व्यः) सनातन, (सुधारः) आनन्दरस की उत्तम धारों सहित आप (पवस्व) मेरे हृदय में परिस्रुत हों ॥१०॥

भावार्थभाषाः -

समाहित मन से निरन्तर उपासना किया गया रसनिधि परमेश्वर आनन्द की बौछारों के साथ हृदय में बरसता है ॥१०॥ इस दशति में सोम नाम से परमात्मा की रसमयता का वर्णन करके उससे आनन्दरस और पवित्रता की याचना होने से, अग्नि नाम से उसके तेजोमय रूप का वर्णन होने से, और मरुतों के नाम से प्राणादि का वर्णन होने से इस दशति के विषय की पूर्व दशति के विषय के साथ संगति है ॥ पञ्चम प्रपाठक में प्रथम अर्ध की पञ्चमी दशति समाप्त ॥ प्रथम अर्ध समाप्त हुआ ॥ चतुर्थ अध्याय में नवम खण्ड समाप्त ॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पवमानः सोमो देवता। सोमः परमात्मा प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) आनन्दरसागार परमात्मन् ! (द्युम्नी) यशस्वी। ‘द्युम्नं द्योततेः यशो वाऽन्नं वा’ इति यास्कः। निरु० ५।५। (अवीनां महान्) समवेतानां वह्नीनां पृथिवीनामपि विशालतरः। इयं (पृथिवी) वा अविः, इयं हीमाः सर्वाः प्रजा अवति। श० ६।१।२।३३। (पूर्व्यः) पूर्वस्मिन्नपि काले भवः, सनातनः इत्यर्थः, त्वम् (सुधारः) शोभनाभिः आनन्दरसधाराभिः सहितः (पवस्य) मम हृदये परिस्रव ॥१०॥

भावार्थभाषाः -

समाहितेन मनसा सततमुपासितो रसनिधिः परमेश्वर आनन्दधाराभिर्हृदये वर्षति ॥१०॥ अत्र सोमनाम्ना परमात्मनो रसमयत्वमुपवर्ण्य तत आनन्दरसस्य पवित्रतायाश्च याचनात्, अग्निनाम्ना तस्य तेजोमयत्ववर्णनाद्, मरुन्नाम्ना प्राणादीनां च वर्णनादेतद्दशत्यर्थस्य पूर्वदशत्यर्थेन सह संगतिरस्तीति विज्ञेयम् ॥ इति पञ्चमे प्रपाठके प्रथमार्द्धे पञ्चमी दशतिः ॥ इति प्रथमोऽर्द्धः ॥ इति चतुर्थेऽध्याये नवमः खण्डः ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।१०९।७, ‘महाँ अवीनामन्’ इत्यत्र ‘महामवीनामनु’ इति पाठः।